- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
नेति हु श्रृष्टि ||
नेति सब द्रिष्टि ||
नेति रे भोग ||
नेति सब सोग ||
नेति सकल आकृति समाना ||
नेति सरस प्रकृति बिधनाना ||
नेति धर्म वेद बहु ग्रंथ ||
नेति कर्म भेद तप मंथ ||
नेति दैव अदैव संसारा ||
नेति पारा नेति हु अपारा ||
नेति स्वर्ग नर्क बहु-लोका ||
नेति आकाश पिंड गंग-स्रोता ||
नेति राग रूप बहुरंगा ||
नेति द्वेष शेष उमंगा ||
नेति प्रकट भया आकार ||
नेति अप्रकट निराकार ||
नेति नेति अहं ||
ब्रह्म अहं अस्मि ||
अहं ब्रह्मास्मि ||
नेति नेति - A concept which gives the theory of Maya, Nothing-hood, Mortality of every existence.
ReplyDeleteअहं ब्रह्मास्मि - Its close to GURBANI's concept of MAN TU JOT SAROOP HAI, In western world, MANSOOR said the equal ANAL HAQ ! (As per पैंगल उपनिषद् there are Four steps of Spiritual Enlightenment - तत्त्वमसि, - वह तू है; त्वं तदसि - तू वह है; त्वं ब्रह्मास्मि - तू ब्रह्म है; अहं ब्रह्मास्मि - मैं ब्रह्म हूं )