- प्रोफ़ैसर कवलदीप सिंघ कंवल
अपना समझ अपनेपन में बेआबरू हुए
थी रंजिश तो कभी गैर बन कर तो आता
वफ़ा का कलमा और खंजर बगल में था
ऐ गिरगिट कभी तो रंगे असल भी दिखाता
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- پروپھئسر کولدیپ سِںگھ کنول
اَپنا سمجھ اَپنےپن میں بےآبرُو ہوئے
تھی رںجِش تو کبھی غیر بن کر تو آتا
وفا کا کلما اور خںجر بگل میں تھا
ء گِرگِٹ کبھی تو رںگے اصل بھی دِکھاتا
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