-प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
किसी भी राष्ट्र के निर्माण एवं उन्नति में उसके अल्पसंख्यकों के योगदान को गौण नहीं आँका जा सकता; ख़ास कर भारत जैसे बहु-सभ्यक, बहु-भाषाई, बहु-धर्मीय, बहु-जातीय एवं बहु नस्लीय राष्ट्र में तो बिलकुल भी नहीं ! भिन्न-२ श्रेणियों के इतने बड़े मानव समूह को एक राष्ट्र में पिरोए रखने के लिए हमें हर श्रेणी की भावनाओ एवं अकांक्षायों को सन्मान के साथ न केवल देखना होगा अपितु हर हाल में उनके विचारों और अपेक्षायों को तंत्र में स्थान देना होगा, साथ ही साथ अपनी पूर्वधारणायों को त्याग कर बड़े समझोतों के लिए भी तैयार होना होगा | कुछ लोग इसे राष्ट्र को खंडित करने वाला विचार मानते हैं, पर यह ध्यान रखना होगा कि राष्ट्र केवल भूमि का एक टुकड़ा मात्र नहीं अपितु मानव संवेदनायों से जुड़ा प्रश्न है, जिसे कृत्रिम अवधारणायों से नहीं यथार्थवाद से ही हल किया जा सकता है | जब मानव संवेदनायों से राष्ट्र का संकल्प निकल जाये तो भूमि पे इसे कदापि कायम नहीं रखा जा सकता |
No comments:
Post a Comment