-प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
सभी साहित्यकार एवं साहित्य से प्रेम करने वाले साथियों से अनुरोध है कि जब भी वह ऐसी कोई भी रचना सांझी करें जिसके लेखक वह खुद न हों तो उस के साथ मूल-रचनाकार का नाम ज़रूर डालें | बिना नाम डालें पोस्ट करने का मतलब है हम उस लेखनी को अपनी कह रहे हैं, जो कि किसी भी चोरी से कम नहीं और इसे करने वाला एक चोर/समाज-द्रोही ही है, जिसे "साहित्य-चोर" की संझा दी जाती है |
हमारे चरित्र के विकार के साथ-२ ऐसा करना कापीराईट कानून कि अवहेलना भी है जिस के दोश में कापीराईट एक्ट की धारा ६३ के अंतर्गत मूल रचयिता के न्यालय में जाने पर रचना चोरी करने वाले को भारी वितीय जुर्माने के साथ-साथ ५ साल तक की जेल का भी सामना करना पड़ सकता है | (ध्यान रहे इस एक्ट के अंतर्गत न्यालय हमेशा मूल-लेखक का ही पक्ष लेता है |)
कईं बार ऐसा होता है कि इन्टरनेट पर हमें कोई रचना ऐसी मिल जाती है जो हमें बहुत ही अच्छी लगती है और जिसे हम अपने प्रिय-जनों के साथ साँझा भी करना चाहते है पर जिस के रचयिता का पता बहुत ढूंढने से भी नहीं लगता, ऐसी स्थिति ही हमारे चरित्र कि असली परीक्षा होती है, जहां से ही हमारे मूल्यों एवं संस्कारों को परिभाषित किया जा सकता | किसी भी ऐसी लेखनी मिलने पर जिसके स्रोत का पता न हो उसे साँझा करते वक्त उसके साथ "लेखक एवं स्रोत - अज्ञात" लिख कर अपनी स्तिथि ज़रूर स्पष्ट करें | ऐसा करके हम न केवल चरित्र-निर्माण के पथ पर और आगे बढ़ते है बल्कि अपनी अपनी अंतर-आत्मा के सन्मुख हो सकने बल भी प्राप्त करते हैं |
आशा है आगे से हम जब भी किसी और लेखक की लेखनी अपने मित्र-जनों के साथ सांझी करेंगे तो इन बातों का ध्यान ज़रूर रखेंगे ..........
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