-कवलदीप सिंघ कंवल
सींचा था जो लहु से
आदर्शों की बुनियाद पे
कुर्बानियों और सपनों ने
किया जो कायम कभी
बनकर आधार-स्तंभ जिसके
उस विवस्था की विडंबना
स्थापति की यह त्रासदी
तंत्र बनाया था खुद जो
आ कर आज बैठ गया
अपनी ही आधारशिलायों का
खुद ही भक्षक बन के |
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