अद्वैत सत्य की निर्छल सत्यता कदापि उसपे उठती सैंकडों शंकांयों से धूमिल नहीं हो पाती बल्कि भठ्ठी में तपने पर ही स्वर्ण के कुंदन बनने के भांति और भी प्रगाढ़ हो कर प्रकट होती है जो अपने असीम तेज के प्रताप से ऐसी अनन्य शंकायों की हस्ती को पूर्णतः गौण करने का सामर्थ रखती है |
- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
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