प्रभु प्रियतम के प्रेम को संसार की उन्नत से उन्नत भाषा में भी परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसे अद्वैत प्रेम की परिभाषा केवल और केवल उसका अनुभव है जो एक मूक व्यक्ति को प्राप्त हुए उस मिष्ठान की भांति है जिसे वह केवल चख सकता है पर उसे अभिव्यक्त करने का सामर्थ नहीं रखता |
- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
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