- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
धारना है आधार को
तो छोड़ दे आधार को
धर्म की है कामना तो
त्याग दे ये कामना भी
युक्ति से मुक्त हो
स्वयं का आभास कर
जान ले तूं गौण किन्तु
परमत्व की अंश है
भीतर ही प्रकाश जो
उसी से आत्मसात हो
सत्य निराकार जान
सत्य रूप साकार हो
ज्ञान की पूर्ण आहुति
ज्ञानोपरि की प्राप्ति
तजन मनन छोड़ दे
लिप्त में निर्लिप्त हो
साक्षी बन स्वयं का
साक्ष्य सब व्योहार हो
कठिनता से कठिन है
सरलता से हो सरल
क्रियम निष्क्रिय हो
करमं अकर्म धार ले
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