शिखर की ललक ऐसी सद अतृप्त इच्छा होती है जिसकी तुष्टि के समस्त प्रयत्न ही उसे इस प्रकार और प्रचुर बना देते हैं कि हज़ारों, लाखों एवं कोटि शिखर भी इस तृष्णा को शांत करने के लिये भले अपनी आहुति दे दें तद्पश्चात भी यह और, कुछ और, की प्राप्ति की आशा में वैसी ही अमिट और लालायित बनी रहती है |
- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल
No comments:
Post a Comment