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Tuesday, May 29, 2012

ਅੰਦਰ-ਝਾਤੀ / اندر-جھاتی

- ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਕਵਲਦੀਪ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ / پروفیسر کولدیپ سنگھ کنول

ਮੰਦਰੀਂ ਰੱਬ ਨਾ ਬਚਿਆ ਬੀਬਾ,
ਨਾ ਵਿੱਚ ਮਸਜ਼ਦ ਦੇ ਅਲਾਹ |
ਕੰਵਲ ਅੰਦਰੇ ਮਾਰ ਲੈ ਝਾਤੀ,
ਓਏ ਓਥੋਂ ਈ ਜਾਂਦੀ ਆ ਰਾਹ |

مندریں ربّ نہ بچیا بیبا،
نہ وچّ مسزد دے اﷲ
کنول اندرے مار لے جھاتی،
اوئے اوتھوں ای جاندی آ راہ

Mandreen Rab Na Bacheya Biba,
Na Vich Maszad De Allah ..
Kanval Andre Maar Lai Jhaati,
Oye Othon Ei Jandi Aa Raah ..

Sunday, May 27, 2012

विचार

जब तक खुद में खुदी शेष है तब तक मनुष्य कभी भी खुदा सा विशेष नहीं बन सकता |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Saturday, May 26, 2012

विचार

अगर प्रेम व्योपार है तो इस व्योपार का परमो-लाभ प्रियतम की लगन में स्वयं को बिन मोल के पूर्णतः बेच देना है; पूर्णतः कि स्वयं में अपने अस्तित्व का एक भी कण शेष ना रहे, बाकी रखने लायक अगर एक कण भी बच जाये तो यह अद्वितीय प्रेम-सौदा लाभ का न रहेगा, तत्क्षण हानि का हो जायेगा |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Friday, May 25, 2012

ਕਦੇ ਕਦੇ / کدے کدے

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- ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਕਵਲਦੀਪ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ

ਕਦੇ ਕਦੇ ਇਹ ਦਿਲ ਵੀ
ਮੋੜ ਕਿੱਧਰ ਨੂੰ ਨੁਹਾਰ ਲੈਂਦਾ,
ਤੇ ਟੁਰ ਪੈਂਦਾ
ਬਿਨ ਸੋਚਿਆਂ
ਬਿਨ ਦੱਸਿਆਂ
ਅਨਜਾਣ ਜਿਹੀਆਂ
ਅਨਘੜ ਕੋਈ ਰਾਹਵਾਂ ‘ਤੇ;
ਖ਼ਬਰੇ ਕਦੇ ਕਦੇ
ਇਹਨੂੰ ਵੀ ਲੋਚਾ ਆਉਂਦੀ
ਪੂਰਿਆਂ ਗਵਾਚ ਜਾਣ ਦੀ
ਆਪਣੇ ਹੀ ਵਜੂਦ ਦੀ
ਪਹੁੰਚ ਤੋਂ
ਪਾਰ ਜਾਣ ਦੀ
ਜਾਂ ਕਿਤੇ
ਅਜਿਹੀ ਅਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ
ਨਵੀਂ ਕੋਈ
ਪਰਵਾਜ਼ ਭਰਨ ਦੀ
ਜਿੱਥੇ ਭੁੱਲ ਕੇ ਵੀ ਕਦੇ
ਆਪੇ ਦੀ ਹੋਂਦ
ਇਹਦੇ ਕੂਲ੍ਹੇ ਖੰਭਾਂ ਨੂੰ
ਕਤਰ ਨਾ ਸਕੇ ਕਦੇ;
ਤੇ ਬੰਨ੍ਹ ਨਾ ਸਕੇ
ਜ਼ਮੀਨੀ ਬੰਧਨ ਕੋਈ
ਇਹਦੀਆਂ
ਅਨੰਤੋਂ ਪਾਰ ਦੀਆਂ
ਸਧਰਾਈਆਂ
ਖਿਆਲ ਉਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ;
ਤੇ ਬਿਨ ਰੋਕ
ਬਿਨ ਟੋਕ
ਤੇ ਬਿਨਾਂ ਹੀ ਕੋਈ
ਭੈਅ ਭਉ
ਲਾਜ ਤੇ ਵਿਖਾਵੇ ਦੇ
ਮਾਣ ਸਕੇ ਇਹ
ਸਦ ਖਿੜ੍ਹੇ
ਸਦ ਨਵਰੰਗ
ਸਦ ਸੁਹੰਨ
ਚਾਅ ਹੁਲਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ...

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- پروفیسر کولدیپ سنگھ کنول 

کدے کدے ایہہ دل وی
موڑ کدھر نوں نہار لیندا،
تے ٹر پیندا
بن سوچیاں
بن دسیاں
انجان جہیاں
انگھڑ کوئی راہواں ‘تے؛
خبرے کدے کدے
ایہنوں وی لوچا آؤندی
پوریاں گواچ جان دی
اپنے ہی وجود دی
پہنچ توں
پار جان دی
جاں کتے
اجیہی اکاش وچّ
نویں کوئی
پرواز بھرن دی
جتھے بھلّ کے وی کدے
آپے دی ہوند
ایہدے کولھے کھنبھاں نوں
کتر نہ سکے کدے؛
تے بنھ نہ سکے
زمینی بندھن کوئی
ایہدیاں
اننتوں پار دیاں
سدھرائیاں
خیال اڈاریاں نوں؛
تے بن روک
بن ٹوک
تے بناں ہی کوئی
بھے بھؤ
لاج تے وکھاوے دے
مان سکے ایہہ
صد کھڑھے
صد نورنگ
صد سہنّ
چاء ہلاریاں نوں ...

Tuesday, May 22, 2012

सर्वे ब्रह्माणि

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

सर्वे बिंदु सर्वो आकाश ||
सर्वे अंध सर्वो प्रकाश ||
सर्वे ब्रह्माणि ||

Sunday, May 20, 2012

ਵਿਚਾਰ / وچار

ਪ੍ਰੀਤ ਕਦੇ ਕੀਤੀ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦੀ ਸਿਰਫ਼ ਵਾਪਰ ਸਕਦੀ ਹੈ; ਪ੍ਰੀਤਮ ਦੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਰੰਗਣ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਉੱਧਮ ਦੀ ਨਹੀਂ ਕੇਵਲ ਪੂਰਨ ਸਹਿਜ ਸਮਰਪਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ...

- ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਕਵਲਦੀਪ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ

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پریت کدے کیتی نہیں جا سکدی صرف واپر سکدی ہے؛ پریتم دے رنگ وچّ رنگن لئی کسے وی ادھم دی نہیں کیول پورن سہج سمرپن دی ضرورت ہے ...

- پروفیسر کولدیپ سنگھ کنول

Tuesday, May 15, 2012

सद् चित सियों चित लायी

टूट गया भ्रम सब बाहर का,
जब सुद्ध स्वयं की पायी ।।
कहै कंवल इत मीत न कोई,
सद् चित सियों चित लायी ।।

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Monday, May 14, 2012

करमं अकर्म धार ले

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

धारना है आधार को
तो छोड़ दे आधार को
धर्म की है कामना तो
त्याग दे ये कामना भी
युक्ति से मुक्त हो
स्वयं का आभास कर
जान ले तूं गौण किन्तु
परमत्व की अंश है
भीतर ही प्रकाश जो
उसी से आत्मसात हो
सत्य निराकार जान
सत्य रूप साकार हो
ज्ञान की पूर्ण आहुति
ज्ञानोपरि की प्राप्ति
तजन मनन छोड़ दे
लिप्त में निर्लिप्त हो
साक्षी बन स्वयं का
साक्ष्य सब व्योहार हो
कठिनता से कठिन है
सरलता से हो सरल
क्रियम निष्क्रिय हो
करमं अकर्म धार ले

Thursday, May 10, 2012

विचार

प्रभु प्रियतम के प्रेम को संसार की उन्नत से उन्नत भाषा में भी परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसे अद्वैत प्रेम की परिभाषा केवल और केवल उसका अनुभव है जो एक मूक व्यक्ति को प्राप्त हुए उस मिष्ठान की भांति है जिसे वह केवल चख सकता है पर उसे अभिव्यक्त करने का सामर्थ नहीं रखता |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Tuesday, May 8, 2012

विचार

सद्गुरु केवल ज्ञान ही हो सकता है; क्यूंकि देह सदा नहीं रह सकती, उसका आदि एवं अंत निश्चित है !

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Monday, May 7, 2012

विचार

ज्ञान वो अनादि अनुभव है जिसकी प्राप्ति की पहली और अंतिम सीढ़ी केवल सहज-प्रयत्नहीनता है; परन्तु विरले ही इस अद्भुत सत्य को जान पाने की शम्ता रखते हैं और बाकी सभ जीवन भर कोल्हू के बैल के भांति अनंत प्रयत्नों में लिप्त रहते हुए ज्ञान के पथ पर कदम भर भी आगे नहीं बढ़ पाते, क्यूँकि यह प्रयत्नों का ही चक्र है जो उनके मार्ग का सभ से बड़ा अवरोध है, और वो सदैव यह समझने में असमर्थ रहते हैं कि जो ज्ञान किसी भी प्रयत्न से प्राप्त हो सकता है वह कभी भी अनादि नहीं हो सकता क्यूँ कि उसका आदि तो साधक का अपना ही प्रयत्न होगा; और इससे भी अद्भुत यह है कि प्रयत्नों के चक्र से मुक्ति प्राप्त करने के लिये प्रयत्नों के कोल्हू को ही इतना तीव्र घुमाना पड़ता है कि इसी तीव्रता की प्रभाव से यह कोहलू टूट कर ढेरी हो जाये और साधक रूपी बैल ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने के लिये इन प्रयत्नों के चक्र से पूर्णतः मुक्त हो जाये ...

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Saturday, May 5, 2012

विचार

शिखर की ललक ऐसी सद अतृप्त इच्छा होती है जिसकी तुष्टि के समस्त प्रयत्न ही उसे इस प्रकार और प्रचुर बना देते हैं कि हज़ारों, लाखों एवं कोटि शिखर भी इस तृष्णा को शांत करने के लिये भले अपनी आहुति दे दें तद्पश्चात भी यह और, कुछ और, की प्राप्ति की आशा में वैसी ही अमिट और लालायित बनी रहती है |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

विचार

अद्वैत सत्य की निर्छल सत्यता कदापि उसपे उठती सैंकडों शंकांयों से धूमिल नहीं हो पाती बल्कि भठ्ठी में तपने पर ही स्वर्ण के कुंदन बनने के भांति और भी प्रगाढ़ हो कर प्रकट होती है जो अपने असीम तेज के प्रताप से ऐसी अनन्य शंकायों की हस्ती को पूर्णतः गौण करने का सामर्थ रखती है |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

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