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Monday, April 14, 2014

क्ष्रणभंगुता

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

पानी का बुलबुला अपनी मचलती हस्ती पे गुमान कर चाहे जितना भी कौतुहल कर ले पर उसकी असली औकात मात्र क्ष्रणभंगुता है !

Sunday, April 13, 2014

प्रेमत्व

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

प्रेमत्व ही साक्षात् परमत्व है; सर्व दिशा में सम-प्रवाहित होने वाली प्रेम की निरछल व निस्वार्थ धारा समस्त सृष्टि में वास करती परम्-उर्जा के भावनात्मक प्रकटीकरण से हर हृदय को पुलकित और नवविभोर कर देती है |

Sunday, May 27, 2012

विचार

जब तक खुद में खुदी शेष है तब तक मनुष्य कभी भी खुदा सा विशेष नहीं बन सकता |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Saturday, May 26, 2012

विचार

अगर प्रेम व्योपार है तो इस व्योपार का परमो-लाभ प्रियतम की लगन में स्वयं को बिन मोल के पूर्णतः बेच देना है; पूर्णतः कि स्वयं में अपने अस्तित्व का एक भी कण शेष ना रहे, बाकी रखने लायक अगर एक कण भी बच जाये तो यह अद्वितीय प्रेम-सौदा लाभ का न रहेगा, तत्क्षण हानि का हो जायेगा |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Thursday, May 10, 2012

विचार

प्रभु प्रियतम के प्रेम को संसार की उन्नत से उन्नत भाषा में भी परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसे अद्वैत प्रेम की परिभाषा केवल और केवल उसका अनुभव है जो एक मूक व्यक्ति को प्राप्त हुए उस मिष्ठान की भांति है जिसे वह केवल चख सकता है पर उसे अभिव्यक्त करने का सामर्थ नहीं रखता |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Tuesday, May 8, 2012

विचार

सद्गुरु केवल ज्ञान ही हो सकता है; क्यूंकि देह सदा नहीं रह सकती, उसका आदि एवं अंत निश्चित है !

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Monday, May 7, 2012

विचार

ज्ञान वो अनादि अनुभव है जिसकी प्राप्ति की पहली और अंतिम सीढ़ी केवल सहज-प्रयत्नहीनता है; परन्तु विरले ही इस अद्भुत सत्य को जान पाने की शम्ता रखते हैं और बाकी सभ जीवन भर कोल्हू के बैल के भांति अनंत प्रयत्नों में लिप्त रहते हुए ज्ञान के पथ पर कदम भर भी आगे नहीं बढ़ पाते, क्यूँकि यह प्रयत्नों का ही चक्र है जो उनके मार्ग का सभ से बड़ा अवरोध है, और वो सदैव यह समझने में असमर्थ रहते हैं कि जो ज्ञान किसी भी प्रयत्न से प्राप्त हो सकता है वह कभी भी अनादि नहीं हो सकता क्यूँ कि उसका आदि तो साधक का अपना ही प्रयत्न होगा; और इससे भी अद्भुत यह है कि प्रयत्नों के चक्र से मुक्ति प्राप्त करने के लिये प्रयत्नों के कोल्हू को ही इतना तीव्र घुमाना पड़ता है कि इसी तीव्रता की प्रभाव से यह कोहलू टूट कर ढेरी हो जाये और साधक रूपी बैल ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने के लिये इन प्रयत्नों के चक्र से पूर्णतः मुक्त हो जाये ...

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Saturday, May 5, 2012

विचार

शिखर की ललक ऐसी सद अतृप्त इच्छा होती है जिसकी तुष्टि के समस्त प्रयत्न ही उसे इस प्रकार और प्रचुर बना देते हैं कि हज़ारों, लाखों एवं कोटि शिखर भी इस तृष्णा को शांत करने के लिये भले अपनी आहुति दे दें तद्पश्चात भी यह और, कुछ और, की प्राप्ति की आशा में वैसी ही अमिट और लालायित बनी रहती है |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

विचार

अद्वैत सत्य की निर्छल सत्यता कदापि उसपे उठती सैंकडों शंकांयों से धूमिल नहीं हो पाती बल्कि भठ्ठी में तपने पर ही स्वर्ण के कुंदन बनने के भांति और भी प्रगाढ़ हो कर प्रकट होती है जो अपने असीम तेज के प्रताप से ऐसी अनन्य शंकायों की हस्ती को पूर्णतः गौण करने का सामर्थ रखती है |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Monday, February 13, 2012

वचन

कोई दुराचारी एवं व्यभिचारी भी वेद-वचनों को मधुर भाषा में बोल कर श्रोतायों को मंत्र-मुग्ध कर सकता है, पर ज्ञान को केवल दूसरों को उप्देश्ने और वाह-वाही लूटने से नहीं अपितु स्वयं के आचार में धारण करने से ही सत्य-चरित्र का निर्माण होता है, जिसके साथ समाज में भी उस चरित्र की लौ से अज्ञान-विनाशी उजियारा होता है |

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

Monday, December 5, 2011

शुभ सत्य अहो !!

जब से छोड़ा है, खूब बनी है... ऐसा जुड़ गया है कि छुटने का नाम ही नहीं है; मानो जैसे उसमें और मेरे में जो भेद था मिट गया, द्वैत अब अद्वैत हो गया, एक मैं, मैं एक हो गया !

शुभ सत्य अहो !!

Tuesday, September 27, 2011

मज़हब / Mazhab

यह सच है कि इन्सान मज़हब ले कर पैदा नहीं होता, क्यूंकि किसी नवजात के पहले रुदन में अल्लाह या राम का फर्क सुनायी नहीं देता !
-कवलदीप सिंघ कंवल

Yeh Sach Hai Ke Insaan Mazhab Le Kar Paida Nahin Hota, Kyuki Kisi Navjaat Ke Pehle Rudan Mein Allah Ya Raam Ka Farq Sunayi Nahin Deta !
-Kawaldeep Singh Kanwal

Friday, August 5, 2011

विचार / Thought

सत्य की स्थापित सत्यता, है केवल परिपेक्ष में,
अभाव यदि परिपेक्ष का, अनाधार गूढ़ सत्य भी |
-कवलदीप सिंघ कंवल

Authenticity of an established truth is always only in relative, if there isn't any reference context of relativity then even the so-believed enigmatic truth is nothing but baseless.
-Kawaldeep Singh Kanwal

Monday, July 18, 2011

ज़िन्दगी

कुछ सवाल जवाबों के लिए नहीं होते और कुछ जवाबों के लिए सवाल नहीं बनते .. अजीब इत्तफ़ाक है यह ज़िन्दगी !
-कवलदीप सिंघ कंवल

Friday, June 10, 2011

विचार / Thought

One which lacks maturity couldn't be termed as thought.
-Kawaldeep Singh Kanwal

जिसमें परिपक्वता का अभाव हो उसे विचार नहीं कहा जा सकता |
-कवलदीप सिंघ कंवल

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