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Monday, May 26, 2014

झूमे है जियरवा / جھُومے ہے جِیروا

- प्रोफ़ैसर कवलदीप सिंघ कंवल 

तरसत धरत पे बरसी बूँदयिया
मन पुलकित है भीज भिजयिया
 
पपीहा की प्यास बुझी स्वाँती से
गरजत दामिनी कित मधुरयिया
 
टिप टिप ताल मृदंगुला यह बाजे
सोर पवनवा जिह झूल झुलयिया
 
तन पर गिरती मचलती ये बूँदें
अंतर छेड़े यह नाद सुरसयिया
 
लाज सरम तज झूमे है जियरवा
पीहु पीहु करत पीहु होय रहिया

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- پروفےسر کولدیپ سِںگھ کنول

ترسط دھرت پے برسی بُوںدیِیا
من پُلکِت ہے بھیج بھِجیِیا
 
پپیہا کی پیاس بُجھی سواںتی سے
غرضط دامِنی کہط مدھریِیا
 
ٹِپ ٹِپ تال مردںگُلا یہ باجے
سور پونوا جِھ جھُول جھُلیِیا
 
تن پر گِرتی مچلتی یہ بُوںدیں
اَںتر چھیڈے یہ ناد سُرسیِیا
 
لاج سرم طج جھُومے ہے جِیروا
پیہُ پیہُ کرت پیہُ ہوی رھِیا

Tuesday, April 8, 2014

भये पुलकित मधुराय

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

इन करि मैला जे लगे पुर धुलते चलि जाय ||
मैला मनवा जो भया कित साबुन धुलि पाय  ||१||

रे मैले मन को धोहिये साबुन गुरु बताय ||
अपना मनवा सौप दे मति गुरि ली प्रणाय ||२||

मनवा जोरी बहु करे चाबुक प्रेम लगाय ||
प्रेम की चाबुक जु लगे दरि गोबिंद के जाय ||३||

प्रेम नगर हरि का बसे निज धाम बनाय ||
ऐसी गंगा बहि चले अंग संग सभी डुबाय ||४||

सब मैला बह बह धुला कंवल प्रेम नहाय ||
प्रेम ह्रदय वासबो भये पुलकित मधुराय ||५||१||

Wednesday, December 21, 2011

Tuesday, December 6, 2011

पढ़ने बैठा ग्रंथ

- प्रोफैसर कवलदीप सिंघ कंवल

जब पढ़ने मैं बैठ गया, पढ़ डाले सब ग्रंथ ||१||
पढ़ते यों जुग बीत गये, पाया न कोई अंत ||२||
अंत न कोयु पाया, कालिख बढ़ती जाये ||३||
जेता पढ़ा तेता कढ़ा, रोम रोम बिल्लाहे ||४||
पढ़ा सो मुर्ख जानिये, आपा सके न मंथ ||५||
अहं कंवल सिंचित किया, पढ़ने बैठा ग्रंथ ||६||

कढ़ा: कढ़ना - जलना, उबलना, लम्बी देर तक तपना
बिल्लाहे: चिलाना, चीख पुकार करना, तडफ़ कर दुहाई देना
मंथ: मथना, मंथन करना

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